तंग आ चुके हैं कश्मकश-ए-ज़िन्दगी से हम
ठुकरा न दें कहीं सभी को बेदिली से हम
हम ग़मज़दा हैं, लायें कहाँ से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएंगे इस ज़िन्दगी से हम
उभरेंगे एक बार फिर ये दिल के वलवले
माना के दब गए हैं ग़म-ए-ज़िन्दगी से हम
सहिष्णुता की भी एक सीमा होती है... किसी की छोटी, किसी की बड़ी... मैं अपनी सीमा का माप तो नहीं भांप सकता लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ की सितम्बर २००८ से लेकर आज तक मेरा एक ही लक्ष्य रहा है - अपने परिवार, अपने काम और अपने निजि जीवन में एक बैलेंस लाने का...
और कल ये सिद्ध हो गया की बैलेंस तो दूर, मैं अपने आप ही को बेवक़ूफ़ बना रहा था... आप दोनों महानुभावों से मेरी एक ही विनती है... मुझसे कोई आशाएं मत रखिये, क्योंकि पच्चीस साल में जो ये नालायक, निर्लज्ज व्यक्ति नहीं कर पाया वो अब न तो कर सकता है, न करने का इच्छुक है... मुझे मेरे हाल पे छोड़ दीजिये, मेरे बिना शायद आप लोगों का जीवन अधिक सुखद रहे, क्योंकि मुझमें आप लोगों की आशाओं को निराशा में तब्दील होने से रोकने का टैलेंट भगवान डालना भूल गया था...
Balance is a strange phenomenon
For as the idiot physics maintains
Force has to be equal on all sides
For the poise of the subject to be retained
And yet, look at the funny side of things
In life, the laws of physics cease to matter
You pull from one direction, you from the other
And the subject is torn asunder
Caught in the crossfire
No escape from reality
Except when he shuts its eyes to the pressures
Turns its back on you in order
To keep his mind in check
You remind it every day
Of how it has failed...
In whatever role he might have taken on
Here's one actor who can't do justice
The script goes awry
And it can't seem to ad-lib
You call it its irresponsibility
It calls it the inability
To play a role it is incapable of enacting
A professional requires talent
He has none
You call it its self-absorption
It whispers aloud
'I am trying to juggle with two forces of nature
A losing battle I fight everyday'
And then it gets a brainwave...
Put out the light and then put out the light.